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महर्षि कणाद

Maharishi Kanada

महर्षि कणाद (वैदिक विश्व पहले परमाणु विशेषज्ञ)
हमारे लीये विशेष गर्व की बात है की महर्षी कणांद का जन्म सोमनाथ, प्रभाष क्षेत्र में हुआ था.

हजारों वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने सर्वांगीण उन्नति की व्याख्या करते हुए कहा था ‘यतो भ्युदयनि:श्रेय स सिद्धि:स धर्म:‘ जिस माध्यम से अभ्युदय अर्थात्
भौतिक दृष्टि से तथा नि:श्रेयस याने आध्यात्मिक दृष्टि से सभी प्रकार की उन्नति प्राप्त होती है, उसे धर्म कहते हैं।

भारत में प्रथम परमाणु विज्ञानी महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन के १०वें अध्याय में कहते हैं ‘दृष्टानां दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टा भावे प्रयोगोऽभ्युदयाय‘ अर्थात्
प्रत्यक्ष देखे हुए और अन्यों को दिखाने के
उद्देश्य से अथवा स्वयं और अधिक गहराई से ज्ञान प्राप्त करने हेतु रखकर किए गए प्रयोगों से अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होता है।

इसी प्रकार महर्षि कणाद कहते हैं पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, दिक्, काल,
मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं।


ईसा से ६०० वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं
का प्रतिपादन किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से डाल्टन की संकल्पना मेल खाती है।

कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं बल्कि ऐसी इकाई
को ‘परमाणु‘ नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु
स्वतंत्र नहीं रह सकते।

कणाद की परमाणु संबंधी यह धारणा उनके वैशेषिक सूत्र में निहित है। कणाद आगे यह भी कहते हैं कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर ‘द्विणुक‘ का निर्माण कर सकते हैं। यह द्विणुक ही आज के रसायनज्ञों का ‘वायनरी मालिक्यूल‘ लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि भिन्न भिन्न पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। यहां निश्चित रूप से कणाद रासायनिक बंधता की ओर इंगित कर रहे हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण (कन्सर्वेशन आफ मैटर) की भी बात कही गई है। ये बातें भी आधुनिक मान्यताओं के संगत हैं। हमारे यहां प्राचीन काल से व्रह्मांड क्या है और कैसे उत्पन्न हुआ, क्यों उत्पन्न हुआ इत्यादि प्रश्नों का विचार हुआ। पर जितना इनका विचार हुआ उससे अधिक ये प्रश्न जिसमें उठते हैं, उस मनुष्य का भी विचार हुआ। ज्ञान प्राप्ति का प्रथम माध्यम इन्द्रियां हैं।
इनके द्वारा मनुष्य देखकर, चखकर, सूंघकर, स्पर्श कर तथा सुनकर ज्ञान प्राप्त करता है। बाह्य जगत के ये माध्यम हैं। विभिन्न उपकरण इन इंद्रियों को जानने की शक्ति बढ़ाते हैं।

कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे
जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जाएंगे तो एक
स्थिति ऐसी आएगी जहां से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता,
क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रत्यन किया तो उसके पुराने
गुणों का लोप हो जाएगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियां हैं-
एक आणविक और दूसरी महत्। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत्
यानी विशाल व्रह्माण्ड। दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है। अत:
कणाद कहते हैं- ‘धर्म विशेष प्रसुदात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायनां
पदार्थानां साधर्य वैधर्यभ्यां तत्वज्ञाना नि:श्रेयसम वै.द.-४
अर्थात् धर्म विशेष में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय के साधर्य
और वैधर्म्य के ज्ञान द्वारा उत्पन्न ज्ञान से नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।

शुद्ध अनाज का असर
महर्षि कणाद परम विरक्त तथा स्वाभिमानी थे। वह फसल की कटाई के बाद खेतों से अन्न के दाने चुनते और उन्हें भगवान को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे। अन्न के कण चुन-चुन कर खाने के कारण ही उनका नाम कणाद पड़ा। वह हर समय उपासना और अध्ययन-लेखन में लगे रहते थे। एक राजा को जब उनके बारे में पता चला तो उसने रथ पर अनाज लदवाकर अपने मंत्री को उनके पास भेजा।

महर्षि कणाद ने अनाज वापस करते हुए कहा, ‘मैं अपना जीवन निर्वाह जिस रूप में कर रहा हूं, उससे मैं संतुष्ट हूं। कृपया इस अन्न को गरीबों में बंटवा दें।’ राजा ने जब यह बात सुनी तो वह बेहद प्रभावित हुआ और दूसरे दिन स्वयं उनके दर्शन करने पहुंच गया। राजा ने उन्हें प्रणाम कर कहा कि वह उनके लिए हर तरह की सुख-सुविधाएं जुटाएगा ताकि वह निश्चिंत होकर साधना कर सकें।

इस पर कणाद ने कहा, ‘त्याग-तपस्या व्यक्ति की पूंजी होती है। मैं गाय की सेवा करके दूध प्राप्त करता हूं। भूमि की सेवा करके अनाज इकट्ठा करता हूं। इस शुद्ध अनाज से ही मेरे मस्तिष्क में धर्मशास्त्रों का भाष्य लिखने की प्रेरणा प्राप्त होती है। राजकोष का अन्न खाकर वह लुप्त हो जाएगी।’ राजा उन्हें दंडवत कर लौट गया।

 

Kanada (Sanskrit: कणाद) was a Hindu sage and philosopher who founded the philosophical school of Vaisheshika and authored the text Vaisheshika Sutra. He probably lived around the 2nd century BCE, while other sources claim he lived in the 6th Century BCE. It is believed that he was born in Prabhas Kshetra (near Dwaraka) in Gujarat, India.

His primary area of study was Rasavādam, considered to be a type of alchemy. He is said to have believed that all living beings are composed of five elements: water, fire, earth, air, Aether (classical element). Vegetables have only water, insects have water and fire, birds have water, fire, earth and air, and Humans, the top of the creation, have ether—the sense of discrimination (time, space, mind) are one.

The concept of anu (atom)

It was Kanada who originated the idea that anu (atom) was an indestructible particle of matter. An interesting story states that this theory occurred to him while he was walking with food in his hand. As he nibbled at the food in his hand, throwing away the small particles, it occurred to him that he could not divide the food into further parts and thus the idea of a matter which cannot be divided further came into existence. He called that indivisible matter anu, i.e. molecule, which was misinterpreted as atom. He also stated that anu can have two states — Absolute rest and a State of motion.

Adherents of the school of philosophy founded by Kanada, considered the atom to be indestructible, and hence eternal. They believed atoms to be minute objects invisible to the naked eye which come into being and vanish in an instant. Vaiseshikas further held that atoms of same substance combined with each other to produce dvyanuka (biatomic molecules) and tryanuka (triatomic molecules). Kanada also put forward the idea that atoms could be combined in various ways to produce chemical changes in presence of other factors such as heat. He gave blackening of earthen pot and ripening of fruit as examples of this phenomenon.

This Indian conception of the atom was developed independently and possibly prior (depending on which dates one accepts for the life of Kanada) to the development of the idea in the Greco-Roman world. Indian theories about the atom are greatly abstract and enmeshed in philosophy as they were based on logic and not on personal experience or experimentation. Thus the Indian theories lacked an empirical base, but in the words of A.L. Basham, the veteran Australian Indologist “they were brilliant imaginative explanations of the physical structure of the world, and in a large measure, agreed with the discoveries of modern physics.”

According to author Dilip M. Salwi, “if Kanada’s sutras are analysed, one would find that his atomic theory was far more advanced than those forwarded later by the Greek philosophers, Leucippus and Democritus.”

Wikipedia

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